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शिव पुराण की संपूर्ण कथा

                                  ॥ ॐ नमो शिवायः ॥ महर्षि वेद व्यास रचित


                                                                 श्री शिवमहापुराण


                                                                   सम्पूर्ण 11 खण्ड


विषय सूची


प्रथम खण्ड ..                                                                         रुद्रसहिता सृष्टि खण्ड


•• द्वितीय खण्ड ●●                                                               रुद्रसंहिता सती खण्ड


•• तीसरा खण्ड ●●                                                                रुद्रसहिता पार्वती खण्ड


•• चौथा खण्ड ●●                                                                  रुद्रसंहिता कुमार खण्ड


•• पांचवाँ खण्ड ●●                                                                 रुद्रसहिता युद्ध खण्ड


•• छठवाँ खण्ड●●                                                                  सतरुद्रसंहिता


●● सातवाँ खण्ड ●●                                                               कोटिरुद्रसंहिता


●● आठवाँ खण्ड ●●                                                                उमा संहिता


• नौवाँ खण्ड ●●                                                                     कैलाश संहिता


• • दसवाँ खण्ड ..                                                                    वायवीयसंहिता (पूर्व खण्ड )


•• ग्यारहवाँ खण्ड ●●                                                     वायवीयसंहिता (उत्तरखण्ड)







                                                                 पुष्पांजली


कर्पूर गौरं करुणावतारं, संसार सारं भुजगेन्द्र हारम्। सदाबसन्तं हृदयार विन्दे, भवं भवानी सहितं नमामि॥1॥ रुण्डाल मालाय कपालकाय, कपाल मालाय विश्वेश्वराय। दिव्याय देहाय दिगम्बराय, तस्मै न काराय नमः शिवाय ॥ 2 ॥ त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव। त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव देवा ॥3॥


                                                                  श्री गणेशाय नमः


नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मोंगराय महेश्वराय । नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नमः शिवाय ॥ 1 ॥ मन्दाकिनी सलिलचन्दनचर्चिताय नंदीश्वरप्रमथनाथ महेश्वराय ।।

मन्दारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मै मकाराय नमः शिवाय ॥2॥  शिवाय गोरीवदनाब्जवृन्दसूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय। श्री नीलकण्ठाय वृषध्वजाय तस्मै शिकाराय नमः शिवायः ॥ ३ ॥ वशिष्ठकुभोंभद्वगौतमाययमुनींद्रदेवार्चितशखेराय 1 चंद्रार्कवैश्वानरलोचनाय तस्मै वकाराम नमः शिवाय ॥4॥ यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय । दिव्याय देवाय निरंजनाय तस्मै यकाराय नमः शिवाय ॥5॥ पंचाक्षरमिदं पुण्यं  यः पठेच्छिवसंनिधौ।      शिवलोक मदाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥ 6 ॥


                                 ॥ इति श्रीमच्शंकराचार्यविरचितं शिवपंचाक्षरस्तोत्रं संपूर्णम् ॥




                                                                ॥ ॐ नमः शिवाय ॥


                                                                  श्री शिव पुराण महात्म्य


भगवान व्यास जी के प्रिय शिष्य सूतजी से शौनकादि ऋषियों ने आग्रह पूर्वक शिव पुराण सुनाने की प्रार्थना की तो सर्वप्रथम सूत जी बोले- हे ऋषियो! आप सब लोग धन्य हैं। जो आप में शिवजी की उत्तम कथा सुनने की प्रीति हुई है। आपके सामने उत्तम शिव भक्ति बढ़ाने वाला तथा शिव को प्रसन्न करने वाला कालरूप सर्प का नाश करने वाला रसायन रूप शास्त्र सुनाता हूँ। इस शास्त्र का वर्णन श्री शिवजी ने स्वयं अपने श्रीमुख से श्रीसनत्कुमारजी से किया। इसलिए इसे शिव महापुराण कहा है। इसके श्रवण, पठन और मनन से कलयुगी जीवों का मन शुद्ध होता है तथा शिव में भक्ति दृढ़ होकर शिवपद की प्राप्ति होती है। 

हे महर्षियो! सर्व प्रकार के दान एवं यज्ञों के करने से जिस फल की प्राप्ति होती है, वह फल शिवपुराण के श्रोता को अनायास ही मिल जाता है।

इस ग्रन्थ की सात संहितायें हैं और इसमें कुल चौबीस हजार श्लोक हैं। संहितायें इस प्रकार हैं- विद्येश्वर संहिता, रुद्र संहिता, शतरुद्री, कोटिरुद्री उमा संहिता कैलाश संहिता तथा सातवीं वायु संहिता वाला यह शिवपुराण महान् तथा दिव्य है। सर्वोपरि ब्रह्म है तथा शुभगति देने वाला है। आत्मवेत्ता पुरुष को इस पुराण का सदा सेवन करना चाहिए।





                                          पापी देवराज की मुक्ति की कथा


सूतजी बोले- हे श्रेष्ठ ऋषियो! जो दुराचारी, पापी, कामी एवं दुष्टजन हों वे भी इस कथा के द्वारा शुद्ध हो जाते हैं। लालची, मिथ्या भाषी, माता-पिता को दुःख देने वाले, दम्भी, पाखण्डी, हिंसक, पतित, द्वेषी, क्रूरात्मा, निर्दयी पुरुष भी कलियुग में इसके द्वारा पवित्र हो जाते हैं। इस प्रसंग में एक प्राचीन इतिहास आपको सुनाता हूँ जिसके श्रवण करने पर सभी पापों का नाश होता है। किरात नगर में एक दरिद्री और दुराचारी ब्राह्मण रहता था। जो धर्म एवं देवों से विमुख था। संध्या वन्दन तो क्या वह स्नान तक भी नहीं करता था उसने अधर्म के द्वारा बहुत सा धन इकट्ठा किया। एक बार एक तालाब पर स्नान करने गया। वहां एक शोभावती नाम की वेश्या भी आई थी। वह उसे देखकर व्याकुल हो गया। वह वेश्या भी एक धनी पुरुष को अपनी ओर आकर्षित देखकर परम प्रसन्न हुई। वे दोनों स्त्री-पुरुष चिरकाल तक कामासक्त होकर विहार करते रहे। उस ब्राह्मणाधम को उसके माता-पिता आदि ने बार-बार समझाया परन्तु उसने उनकी एक न मानी। उस नीच ने एक दिन रात्रि में ईर्ष्या के कारण सोते हुए माता-पिता तथा स्त्री को मार डाला और धन सम्पत्ति ले जाकर वेश्या को दे दी।

दैवयोग से वह प्रतिष्ठापुर में आया। वहाँ उसने एक शिवालय देखा, जिसमें अनेक साधुजन एकत्र थे। वह ब्राह्मण वहाँ बीमार पड़ गया। इसी अवस्था में उसने एक ब्राह्मण के मुख से शिवजी की परम पवित्र कथा सुनी। एक मास के अनन्तर वह देवराज नामक ब्राह्मण मर गया। यमदूत उसे पकड़कर यमपुरी ले गये। उसी समय शिवलोक से शिवजी के दूत त्रिशूल लिए भस्म लगाये रुद्राक्ष धारण किये उसे लेने यमलोक में पहुँच गये और यमदूतों से देवराज को छुड़ा लिया फिर उसे दिव्य विमान पर चढ़ाकर कैलाश पर ले जाने लगे। उस समय यमपुरी में भारी कोलाहल हुआ। उसे 'सुनकर स्वयं यमराज वहाँ आये और साक्षात् शिव के समान उनके चार दूतों को देखकर उनकी यथाविधि पूजा की। धर्मराज ज्ञान के द्वारा सब कुछ जान गये थे।

दूतों ने ब्राह्मण को ले जाकर दया के सागर शिव को ने अर्पित किया। हे मुनि! शिव की यह कथा परम पावनी है जिसके श्रवण मात्र से महापापी ब्राह्मण भी मुक्त हो गया। अतः शिवपुराण की कथा को विधिपूर्वक सुनने से तो अमर फल की प्राप्ति होती है।


                                                             चंचुला की कथा


समुद्र के तट पर स्थित देशों के अन्तर्गत वाष्कल नामक एक ग्राम के निवासी स्त्री-पुरुष दुष्ट प्रकृति और पाप-बुद्धि के थे। पुरुष पशुवृत्ति के और स्त्रियाँ व्यभिचारिणी थीं। उस ग्राम में बिन्दुग नामक एक ब्राह्मण भी रहता था। उसने अपनी कामातुरतावश, अत्यन्त रूपवती भार्या के होते हुए भी, सुन्दरी वेश्या को अपना रखा था। वेश्या में आसक्त वह ब्राह्मण एक अपनी पत्नी से धीरे-धीरे विमुख होता गया। कुछ समय तक तो ब्राह्मण की पत्नी, चंचुला काम के वेग को सहन करती रही परन्तु उस युवती के लिए सदा के लिए अपनी इन्द्रियों पर नियन्त्रण रखना सम्भव न हुआ। फलतः वह एक जार से रति करने लगी। एक रात्रि को बिन्दुग ने अपनी पत्नी को परपुरुष के साथ रमण करते हुए देखा तो वह क्रोध से विक्षिप्त हो उठा। जार पुरुष तो वहाँ से भाग गया और अब बिन्दुग अपना सारा क्रोध अपनी पत्नी पर उतारने लगा तथा मुक्कों से उसकी पिटाई करने लगा। चंचुला ने अपने पति से विनयपूर्वक कहा कि जब आप मुझ जैसी पतिव्रता और रूपवती युवती को छोड़कर वेश्यागमन करते हो तो मैं कितनी दुःखी होती हूँ, इसका आप अनुमान तो लगाइये कि भला मैं किस प्रकार सुदीर्घ काल के लिए कामपीड़ा को सहन कर सकती हूँ? यह सब आप सोच-समझ कर बताइये। पत्नी के वचनों को सुनकर दुर्बुद्धि बिन्दुग बोला-प्रिये! तुम्हारा विश्लेषण सत्य । तुम निर्भय होकर जार पुरुषों के साथ विहार करो, परन्तु उन्हें रति सुख देकर बदले में उनसे धन कमाओ। उस धन से हम दोनों का बहुत लाभ होगा।


चंचुला ने पति की आज्ञा को स्वीकार कर लिया और फलतः दोनों कुकर्मी हो गए। समय आने पर बिन्दुग की मृत्यु हो गई और वह नरक में अनेक दुःख भोगकर पिशाच योनि में उत्पन्न हुआ। चंचुला का यौवन भी परपुरुष का संग करते-करते बीत गया। एक बार वह अचानक भ्रमण करती हुई गोकर्ण क्षेत्र में आई तो वहाँ उसने मन्दिर में एक पण्डित जी को कथा बांचते में देखा। वह वहाँ बैठकर दत्तचित्त होकर कथा सुनने लगी। हुए उसने कथा में जार पुरुषों में आसक्त स्त्रियों के दुष्परिणाम-नरक भोग की व्यथाजनक बात ज्यों ही सुनी, त्यों ही वह कांप उठी। कथा की समाप्ति पर, सब लोगों के चले जाने पर वह कथा वाचक ब्राह्मण के चरणों में गिरकर बिलखने लगी। ब्राह्मण द्वारा पूछे जाने पर चंचुला ने अपनी सारी करनी कह सुनाई और रो-रो कर ब्राह्मण से अपने उद्धार का उपाय पूछने लगी । ब्राह्मण कहा कि जिस शिव पुराण की कथा को सुनकर तुम्हारे चित्त में विवेक जागृत हुआ है, उसी पुराण को सुनने से तुम्हारा उद्धार हो सकता है। जिस प्रकार निर्मल दर्पण में प्रतिबिम्ब सही दीखता है, उसी प्रकार शिव पुराण के सुनने से विशुद्ध हुए चित्त में अंबिका सहित भगवान शिव का साक्षात्कार हो जाता है। शिवजी की कथा के श्रवण मनन से चित्तशुद्धि तथा गणेश, कार्तिकेय सहित शिव की भक्ति प्राप्त होती है। शंकर का भक्त उनकी कृपा से देव-दुर्लभ मुक्ति पा लेता है। अतः हे ब्राह्मण स्त्री! तुम्हारे कल्याण का एकमात्र उपाय 'शिव पुराण' का श्रवण ही है।

ब्राह्मण के वचन सुनकर उसके प्रति आभार प्रकट करती हुई चचुला उससे ही शिवकथा सुनाने का अनुरोध करने लगी। ब्राह्मण ने उस दीन अबला की प्रार्थना को स्वीकार किया। चंचुला, ब्राह्मण द्वारा बतायी विधि से स्नान करके, जटा वल्कल धारण करके, शरीर पर भस्म लगा और रुद्राक्ष धारण करके तथा जितेन्द्रिय होकर श्रद्धा भक्तिपूर्वक शिवपुराण का श्रवण करने लगी। इसी प्रकार शिव के ध्यान में मग्न होकर ही चंचुला ने शरीर त्याग किया और शिवपुरी में पहुँचकर उमा सहित भगवान शंकर के साक्षात् दर्शन किए। उसकी श्रद्धा-भक्ति को देखते हुए पार्वती ने उसे नित्य के लिए अपना सामीप्य प्रदान किया।


शौनक जी ने सूतजी से निवेदन किया कि वे चंचुला का और आगे का वृतान्त सुनाने की कृपा करें। तब सूतजी ने कहा हे मुनिश्वर! चंचुला ने अपनी निश्छल भक्ति से भगवती पार्वती का सानिन्ध्य प्राप्त कर लिया। एक दिन उसने दया, करुणा की स्रोतस्वनी भगवती पार्वती से अपने पति के सम्बन्ध में जिज्ञासा की तो भगवती ने उसे बताया कि बिन्दुग नरक की अनेक यातनाएं भोगने के उपरांत इस समय पिशाच योनि में पड़ा हुआ कष्टमय जीवन बिता रहा है। यह सुनकर चंचुला खिन्न और उद्विग्न हो उठी। वह भगवती की अनेक प्रकार से स्तुति वन्दना करके उनसे अपने पति के उद्धार की याचना करने लगी। अपने भक्तों को कृतकृत्य करने वाली माता पार्वती ने को बुलाकर तुम्बुरु गन्धर्व उसे विन्ध्याचल पर्वत पर जाकर वहां पिशाच योनि में पड़े बिन्दुग को शिव पुराण सुनाने और इससे उसका उद्धार करने का आदेश दिया। माता की आज्ञा को शिरोधार्य करते हुए तुम्बुरु विन्ध्याचल पहुँचा और वहाँ उस पिशाच को बलपूर्वक बिठाकर कथा सुनाने लगा। शिवकथा के आयोजन को सुनकर देवता लोग भी वहाँ पहुँच गए। इससे श्रोताओं का वहाँ एक सुन्दर समाज जुट गया। तुम्बुरु से शिवकथा सुनकर जहाँ अन्य सभी उपस्थित सज्जन कृतकृत्य हो गए, वहीं बिन्दुग निष्पाप होकर पिशाच योनि से मुक्त हो गया। बिन्दुग अब निरंतर शिवजी का गुणगान करने लगा। भगवान शंकर ने उसकी अचल प्रीति को देखकर उसे अपना गण बना दिया।


सूतजी बोले- हे शौनक महाराज! इस प्रकार इस शिवपुराण की कथा बड़े से बड़े पापियों का उद्धार करके उन्हें सदगति प्रदान करने वाली है। अब मैं आपको इस पुराण को सुनने की विधि बताता हूँ, क्योंकि विधिपूर्वक सम्पन्न कार्य अतुल सिद्धिदाता होता है।


                                            शिव पुराण सुनने की विधि         


*   शिव पुराण के निर्विघ्न श्रवण के लिए ब्राह्मण को शुभ मुहुर्त निकलवाना चाहिए।


*  देश देशान्तर स्थित अपने बन्धु-बान्धवों को अपने शुभ निश्चय की सूचना देते हुए उन्हें निमन्त्रित करना चाहिए। 


*अपने नगर के इष्ट मित्रों तथा बंधु-बांधवों को भी श्रद्धापूर्वक निमन्त्रण देना चाहिए और आए हुए सज्जनों का यथोचित स्वागत करना चाहिए।


*  शिवालय, तीर्थ अथवा घर में ही कथा की सारी व्यवस्था करनी चाहिए।


* कथास्थल की भूमि का संशोधन कराकर उसे चित्रों से सुसज्जित करना चाहिए।


* केला-चंदोवा आदि से सुसज्जित एक सुन्दर मण्डप बनाना चाहिए और उसके चारों ओर ध्वजा-पताकाएं लगानी चाहिए। 

*  वक्ता के लिए उपयुक्त स्थान और सुखद आसन की व्यवस्था करनी चाहिए। 


*वक्ता को पूर्वाभिमुख और श्रोता को उत्तराभिमुख होकर बैठना चाहिए।


* कथावाचक के प्रति उसके आयु, सामाजिक स्थिति और शारीरिक अवस्था के भेदभाव को छोड़कर आदर भाव रखना चाहिए तथा उसे सदैव श्रद्धापूर्वक प्रणाम भी करना चाहिए।


* पुराणज्ञ, शुद्ध-बुद्ध तथा शान्तचित्त ब्राह्मण को अपने यजमान के हित साधन को ही अपना पुनीत कर्त्तव्य मानते हुए कथा के दिनों में संयम नियम का जीवन व्यतीत करना चाहिए। 


* ब्राह्मण को प्रतिदिन सूर्योदय से साढ़े तीन प्रहर तक कथा सुनानी चाहिए, उसके उपरान्त सभी उपस्थिति लोगों को मिलकर एक साथ भजन-कीर्तन करना चाहिए।


*  शिवपुराण के वक्ता के पास सहायतार्थ एक पुराणज्ञ ब्राह्मण भी रहना चाहिए। कथा में आने वाले विघ्नों के निवारणार्थ विधिपूर्वक गणेश पूजन करना चाहिए। 


* यजमान का कथा अवधि में ब्रह्मचर्य तथा शुद्धाचार का पालन अत्यन्त कठोरता पूर्वक करना चाहिए।


* कथावाचक ब्राह्मण को अपने यजमान को शिवपुराण में साक्षात् महेश्वर की भावना कराते हुए उससे इस पवित्र ग्रन्थ का पूजन कराना चाहिए ओर उससे यह प्रार्थना करानी चाहिए कि भगवान शंकर उस पर प्रसन्न होकर उसको इस ग्रन्थ के मर्म को समझाने और निर्विघ्न श्रवण करने की क्षमता प्रदान करें।


* यजमान को ऐसे पाँच ब्राह्मण पृथक से नियत करने चाहिए जो पञ्चाक्षर शिव मंत्र का निरंतर जाप करते रहें।


* यजमान का यह भी कर्तव्य है कि ग्रन्थ समाप्ति पर वक्ता तथा अन्य ब्राह्मणों को अन्न-वस्त्र तथा दक्षिणादि से पूर्णतः संतुष्ट करें।


*  इस प्रकार शिवपुराण का विधिपूर्वक श्रवण निःसंदेह इहलौकिक सुख और पारलौकिक कल्याण को देने वाला है।


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                                       श्री शिव महापुराण रुद्रसंहिता प्रथम (सृष्टि) खण्ड प्रथम अध्याय

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